बुधवार, 10 अप्रैल 2013

सतरंगी आभा

 

दृश्य हुआ अभिराम बहुत तब ,वलय पहन जब नभ निकला
सतरंगी आभा से विस्मित ,दमक उठी अब धरा विकला
देख-देख कर रूप अनूप अब ,मन ही मन संकुची वो मही
हरा दुकूल झट ओढ़ लिया,आभा न कमतर उसकी कहीं
पगडण्डी-नागिन बलखाती ,सरपट झटपट भाग रही
मणि समझ कर मणिधर के सर ,ढूंढें व्याकुल व्याल यहीं
गर्जन तर्जन बंद हुआ सब ,गगन लगे अब धुला-धुला
धरती का हर कौना निखरा ,रूप दिखा खूब खिला -खिला
दीपिका "दीप "

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