सोमवार, 3 जून 2013

तेरे बिना

सन्नाटा है पसरा तेरे बिना,
जग लगता सूना तेरे बिना
अब गीत अधर पे आते नहीं
हर नग्मा अधूरा तेरे बिना

हर ओर उदासी छायी है,
कैसी किस्मत ये पायी है,
हर पल जहाँ रौनक रहती थी
अब चुप सी छायी तेरे बिना

सारा आलम ये बहक गया,
आँखों से कजरा ढुलक गया,
बिन तेरे सजूँ मैं क्या सजना,
ये श्रृंगार अधूरा तेरे बिना.

आने को मौसम है प्यारा,
महकेगा उपवन ये न्यारा,
अब आ जा साजन पास मेरे,
नीरस है जीवन तेरे बिना.

गुरुवार, 16 मई 2013

जीवन के मोड़

.
जीवन में हमारे कभी-कभी , ऐसे मोड़ भी आते है
कुछ राही अनजाने बन कर ,अनायास टकराते है

बन के सहारा साथी हमारा ,हम ही को लूट जाते है
भूख प्यास नींदें ही नहीं ,कई सपने छिन जाते है
पैठ जाते है अन्तस् में, इस तरह वे आते है
लाख करे कोशिश हम , फिर निकल नहीं पाते है

महल झूठ के नित्य प्रति ,यहाँ बनाए जाते है
नित्य नए फरेब के ही ताने बुने जाते है
हम तो बस बेबस हो कर ,आहें ही भर पाते है
लाख करे कोशिश पहचान ही नहीं पाते है

ओढ़े मुखोटे लोग अनगिनत ,चारों तरफ आते है
व्यथा सुनाए किसको ,हम दर्द न कोई पाते है
वफ़ा के बदले धोखा दे ,बेवफ़ा बन जाते है
लाख करे कोशिश हम ,प्रतिकार न कोई ले पाते है

देख उन्हें खिला-खिला हम भी तो खिल जाते है
बिन धागे के जाने क्यूँ फिर खींचे चले जाते है
विधना के हाथों खुद को परवश हम सदा पाते है
लाख करे कोशिश 'दीप "यह बुझते नहीं पाते है
दीपिका "दीप "

आव्हान

हो मानव जब तुम मानव से तो प्यार करो रे 
निराश ह्रदय में आशा का संचार करो रे 

कातर स्वर कितने नित्य तुम्हें पुकार रहे है 
पीड़ा से अपनी नि-दिन वे चीत्कार रहे है 
बन पीड़ा हर सब पीड़ित जनों के त्रास हरो रे 
निराश ह्रदय में आशा का संचार करो रे 

कितनी ही श्वासें गर्भों में दम तोड़ रही है 
कलिया कितनी ही खिले बिन चटक रही है 
मानव हो तो दानव सा मत काम करो रे 
निराश ह्रदय में आशा का संचार करो रे 

तरुणाई कितनी लक्ष्य हीन हो भटक रही है 
माताएं कितनी वृद्धाश्रम में तड़प रही है 
मझधार में डूबती नैया की पतवार बनो रे 
निराश हृदय में आशा का संचार करो रे 

हो मानव जब तुम मानव मन की थाह गहो रे 
क्षमा दया तप त्याग की मिसाल बनो रे 
 अब मानवता हित तेजी से हुंकार भरो  रे 
निराश ह्रदय में आशा का संचार करो रे 
                                                                      दीपिका "दीप "

शनिवार, 11 मई 2013

नियति नटी के खेल निराले ......

 
नियति नटी के खेल निराले , खोले उसने नयन कपाट
दूर-दूर तक पसरा दिखता ,सब रेतीला साफ़ सपाट

सपने चूर हुए पल भर में .मेघ निराशा के छाये
जाने कब आए जीवन में फिर आशाओं के साये

गूँज उठे जब मेरे मन में,उन यादों के प्यारे नग़में
चैन न पाऊं पल भर उनको ,सुने बिना इस जग में

दीप-ज्योति है लगी कांपने,खत्म दीप का स्नेह हुआ
दिल सुलगे तंदूर सरीखा, निकल रहा बस धुआँ-धुआँ

किसे सुनाएँ अपनी पीड़ा, जब वक्त हमारा रूठ गया,
नेह नगर मॆं कोई बंजारा, आया सब कुछ लूट गया,

मंजिलें थी पास में मेरे, जाने राह क्यूँ भटक गई
बीच भंवर में मेरी नैया,आकर कैसे यूँ अटक गई

अन्धकार की धुंधली आभा, जाने कहाँ विलीन हुई
मन ही मन तड़पू ऐसे, मानो जल बिन मीन हुई

खुशिया सब हुई पराई, अब गम ने दस्तक दे डाली
रीत गया आशा का अमृत, अंजलि रही खाली खाली

थे कल तक जो मेरे अपने, बन गये आज पराये
रहे सदा खुशहाल जीवन में , ना विपदा उन पर आयॆ,

दुनिया को अंधकार से, सदा बचाना है धर्म मेरा,
जलते रहना इस जग में ,"दीप"हमेंशा कर्म तेरा
दीपिका" दीप "

गुरुवार, 2 मई 2013

याद उनको भी तो आना चाहिए


अब मुहब्बत ही लुटाना चाहिए,
नफरतों को भूल जाना चाहिए.

छोड़ दो अब यार ये शर्मो हया,
रुख से पर्दा अब हटाना चाहिए

देख कर नादानियां उसकी मुझे,
इक सबक उसको सिखाना चाहिए.

राज दिल में और कितने है छिपे,
कुछ तो हमको भी बताना चाहिए

कौन अपना है, सरे महफ़िल यहाँ ,
हाल दिल का क्यूँ दिखाना चाहिए

जिस वतन की मिटटी में पैदा हुए
फर्ज तो उसका निभाना चाहिए

दीप कब तक याद उनको ही करे,
याद उनको भी तो आना चाहिए..
                                                                         दीपिका"दीप"

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

प्रीत की प्यास लिए मन में

 
प्रीत की प्यास लिये मन में
जीवन -पनघट पर जा बैठी

देखा जो पिया को राह खड़े
मैं जाने क्यूँ सकुंचा बैठी

नयन हुए जब चार पिया से
अपनी सुध-बुध खो बैठी

प्रीत की गगरी भर-भर कर
मैं नेह अपना छलका बैठी

मन में पिया की मूरत रख
मैं जीवन -पथ पर चल बैठी

मिलन हुआ सत जन्मों का
खुद को न्यौछावर कर बैठी

देखा पिया जब चंदा सा
मैं चाँदनी उनकी बन बैठी

चंचल सागर की लहरों पे,
जीवन की नाव चला बैठी

सावन की प्यासी सरगम में
अपनी भी तान मिला बैठी

पिय के हाथों की लकीरों में
मैं अपना भाग्य लिखा बैठी ..

इस से पहले कि सांझ ढले
मैं प्रेम का "दीप 'जला बैठी .
दीपिका "दीप "

गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

चाहतों का सिला दीजिए...

 
 
बाद में फिर सज़ा दीजिए,
जाम पहले पिला दीजिए

हो गयी गर मैं बेहोश तो,
होश फिर से दिला दीजिए

प्यास की पीर साक़ी से है,
चाहतों का सिला दीजिए .

फिर ख़िजा ने उजाड़ा चमन,
आप ही गुल खिला दीजिए.

मंजिलें मिल सकें इश्क की ,
राह फिर से दिखा दीजिए.

नब्ज़ रुक रुक के चलती है क्यूँ,
धड़कनों को बता दीजिए .

कह रही कुछ ये बेताब शब्,
दीप कुछ अब जला दीजिये .
                                                                   दीपिका "दीप "